।।दोहा।।
अक्षय तेरा कोष है, अक्षय तेरा नाम।
अक्षय पलकें खोल दे, अक्षय दे वरदान।
।।चौपाई।।
जय अक्षय हरजी सुत देवा। शीश नवायें, करते सेवा।।1।।
जय मारुति सेवक सुखदायक। जय जय जय अंजनि सुत पायक।।2।।
जय जय संत शिरोमणि दाता। जय जीवू बार्इ के भ्राता।।3।।
जय हरजी सुत कीरति पावन। त्रिभुवन यश सब शोक नसावन।।4।।
जय हनुमत चरणों के दासा। पूर्ण करो सब मन की आशा।।5।।
जय तुम कींकर महावीर का। सरजीवन है किया नीर का।।6।।
जय तुम पौत्रवंश सुखदायक। महावीर सेवक कुलनायक।।7।।
संवत पन्द्रह सौ पचास में। भादव बदी पंचमी प्रात: में ।।8।।
परसाणें से नाम ग्राम में । जन्मे प्रभुजी धरा धाम में।।9।।
कृष्ण पक्ष शुभ घड़ी लग्न में। लियो जन्म हरजी आंगन में ।।10।।
नाम दिया पिता ने अक्षा। सुमिरन से करते हो रक्षा।।11।।
सरल नाम तव अखाराम है। करते सुमिरन सुबह शाम है।।12।
दिव्य ललाट केशर का टीका । कटी पीताम्बर सोहे निका।।13।।
हाथ छड़ी गल माला सोहे। पंचरंग पाग भक्त मन मोहे।।14।।
सुन्दर राजे गले जनेऊ। रेशम जामा, पगां खड़ाऊँ ।।15।।
छड़ी चिमटा है विष हर्ता। दुखित जनों के पालन कर्ता ।।16।।
तांती और भभूति नीकी। दलन रोग भव मुरि अमीसी ।।17।।
डेरी माँई गऊ चराई। घूणी पर नभ वाणी सुनाई ।।18।।
तपबल से कपि दर्शन पाया। मूरत ले परसाणे आया ।।19।।
भानु दिशा मुख बजरंग कीन्हा। ध्रुव दिश देवल तुमको दीन्हा ।।20।।
सन्मुख पीपल है बजरंग के। हरे खेजड़ी अवगुण चित्त के ।।21।।
बेरी तरु की महिमा भारी। कफ दोषन को टारनहारी ।।22।।
पोल एक पुरब मुख सोहे। मंदिर छवि भक्तन मन मोहे ।।23।।
अमृत कुण्ड और धर्मशाल है। शुभ सुन्दर मन्दिर विशाल है ।।24।।
पूनम, मंगल, शनिवार है। मंदिर दर्शन की बहार है ।।25।।
रात्रि जागरण भजन सुनावै। जो सेवक मांगे सोर्इ पावै ।।26।।
पौत्र, प्रपौत्र, बहू सब आते। कर दर्शन सब मंगल गाते ।।27।।
श्री फल लड्डू भोग चढ़वे। मनवाँछित फल सो नर पावै ।।28।।
द्वार पितामह के जो आवे । बिन मांगे सब कुछ पा जावे ।।29।।
कृष्ण पक्ष पंचमी का मेला। कोई युगल भक्त अकेला।।30।।
दादा तेरा अमर नाम है। प्रतिपल मुख पर राम राम है ।।31।।
हुकमचंद सुत रामबगस के। विषधर गया पैर में डसके ।।32।।
रोम रोम विष मूँजा फूटा। व्याकुल भए, धीरज मन छूटा ।।33।।
जब कलवाणी दी तत्काला। जैसे तेल दिये बीच डाला ।।34।।
ऐसे काज अनेकों सारे। ते मम ते नहीं जाये उचारे ।।35।।
बैंडवा में भी आज बिराजे। अगणी गुमटी छापर राजे ।।36।।
प्रात: सांय सिगड़ी के दर्शन। तापर लक्ष्मी होती परसन ।।37।।
कर दे दादा वरद हस्त अब। अभय दान दीजे अक्षय तब ।।38।।
कीड़ कांट प्रभु रक्षा करते । भूत-प्रेत भय व्याधा हरते ।।39।।
देश विदेश जहाँ जो ध्यावे । चम्पा सुखद परम पद पावे ।।40।।
।।दोहा।।
तुम हो दया निधान प्रभु, मैं मूरख अज्ञान।
भूल चूक सब क्षमा करो, पौत्र वंश तव जान।।