ॐ जय जय ऋषि स्वामी , प्रभु जय जय ऋषि स्वामी ।
पर उपकारी दाता , हो अन्तर यामी ।। ओउम् ।।
नारायण की नाभी कमल से ब्रह्मा प्रकट हुए ।
ब्रह्मापुत्र अथर्वा तिनसे आप भये ।। ओउम् ।।
तिथि अष्टमी भादव सुदी में , आप जन्म लीना ।
सनकादिक ब्रह्मादिक स्वास्ति पठन कीना ।। ओउम् ।।
दधीचि ऋषि है नाम आपका जटा मुकुट वारे ।
देवन के दुःख हरता शान्ति मात – प्यारे ।। ओउम् ।।
वृत्रासुर ने युद्ध किया , जब इन्द्रा दिक हारे ।
इन्द्र अतिथी हो आये शरणागत थारे ।। ओउम् ।।
देव दुखित हो करें प्रार्थना आप दया कीजे ।
वृत्रासुर मारण कारण , अस्थि दान दीजे ।। ओउम् ।।
ब्रह्मा विद्या में आप निपुण , हो चार वेद ज्ञाता ।
तुम समान दुजो नहीं , ओर कोई दाता ।। ओउम् ।।
शरणागत की लज्जा राखी कारज सब सारे ।
अस्थि दान तुम दीना वृत्रासुर मारे ।। ओउम् ।।
जय जय शब्द करें इन्द्रादिक शक ध्वनी बाजे ।
ऋषियन में आप शिरोमणि , दानी सब लाजे ।। ओउम् ।।
हाथ जोड़ कर करू विनय प्रभु , सुख सम्पति दीजे ।
वंश वृद्धि हो सबकी आशीष ये दीजे ।। ओउम् ।।
दधिचि ऋषि जी की आरती जो कोई नर गावे ।
रिद्धि सिद्धि सुख सम्पत्ति , जी भर के पावे ।। ओउम् ।।
Jai Ho Maharishi Dadhichi ki Jai ho maa dadhimati
Jai Ho Maha Tyagi Maharishi Dadhichi ki
Jai ho tyaag murati dadhichi rishi
जय हो ऋषि श्रेष्ठ महर्षि दधीचि
जय जय दादा महर्षि दधीचि जी की